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सोशल साइट्स पर लगाम की तैयारी पर बरपा हंगामा

नीरज सक्सेना । सरकार ने सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर लगाम कसने की बात क्या कही, चारों तरफ हंगामा मच गया। आम जनता से लेकर सेलेब्रिटियों, राजनेताओं और बुद्धिजीवियों तक ने इस कदम पर मिली-जुली प्रतिक्रिया दी है। ज्यादातर लोगों ने राजनीतिक सेंसरशिप की मुखालफत की है, लेकिन साथ ही इन वेबसाइटों पर देवी-देवताओं और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी आपत्तिजनक सामग्री के प्रकाशन पर पाबंदी लगाने की कोशिशों को समर्थन भी जताया है।
ट्विटर मंत्री के नाम से मशहूर पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने लिखा है, मैं राजनीतिक सेंसरशिप के खिलाफ हूं, लेकिन सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ सामग्री जैसे कुछ चिंताजनक मुद्दे भी हैं, जिनसे सख्ती से निपटना होगा। भाजपा के युवा सांसद वरुण गांधी ने भी थरूर के सुर में सुर मिलाए। उन्होंने लिखा, ‘इंटरनेट एकमात्र सच्चा और लोकतांत्रिक माध्यम है, जो स्वार्थी लोगों, मीडिया मालिकों और पैसा लिखकर खबर लिखने पत्रकारों से मुक्त है।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, मैं सेंसरशिप के विचार से घृणा करता हूं। लेकिन मैंने खुद देखा है कि फेसबुक और यू-ट्यूब जैसी वेबसाइटों पर कितनी खतरनाक व भड़काऊ सामग्रियों का प्रकाशन-प्रसारण हो सकता है।
दूसरी ओर, सिने जगत भी सरकार की इन कोशिशों पर अपने विचार रखने में पीछे नहीं रहा। अभिनेता अनुपम खेर ने ट्विटर पर लिखा है, मैं समझता हूं कि अतुल्य भारत का नारा विकास और अनूठेपन को दर्शाता है, न कि हमारे मूलभूल अधिकारों पर निगरानी रखने को लेकर। यह एक बड़ा मजाक है।’
आम जनता ने भी फेसबुक और ट्विटर जैसी वेबसाइटों पर अपनी प्रतिक्रिया दी। नई दिल्ली की अदिति चौधरी ने लिखा, ‘आप आपराधिक सामग्रियों का प्रकाश तो रोक सकते हैं, लेकिन आपराधिक मानसिकता वाले लोगों का क्या? कपिल सिब्बल के पास इसे लेकर कोई आइडिया है? मुरादाबाद के जावेद कहते हैं, बिग बॉस में सन्नी लियोन के खिलाफ विरोध जताने के लिए भारत में कोई महिला प्रकोष्ठ सामने आए, वरना कपिल सिब्बल बिग बॉस पर भी सेंसर की कैंची चला देंगे।
हालांकि पुणे की पूनम राउत ने सिब्बल के कदम को जायज ठहराया है। उन्होंने लिखा, अरे कपिल सिब्बल क्या बोलना चाहते हैं, पहले उसे तो सुन लीजिए। मुझे लगता है कि उनका कदम सही है।’ पटना के कुमार आलोक लिखते हैं, ‘फेसबुक और ट्विटर पर धार्मिक भावनाएं भड़काई जा रही हैं। मैं सिब्बल साबह से सहमत हूं। जब एमएफ हुसैन की पेंटिंग्स पर इसी तरह की भावना भड़काने के आरोप लगे थे..तब कुछ लोगों ने उन्हें देश निकाला दे दिया। उस समय सरकार ने उन्हें वापस बुलाने के लिए क्या कोई कदम उठाए?’
हंगमा क्यों है बरपामैं सेंसरशिप को खारिज करता हूं। कला, साहित्य और राजनीतिक विचार पाक साफ हैं। सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ सामग्री पेट्रोल पंप पर माचिस के समान है।

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